भारतीय संस्कृति में प्रत्येक प्राकृतिक घटना के पीछे एक गहरा अर्थ और दर्शन छिपा हुआ है। स्त्रियों का मासिक धर्म (ऋतु) भी केवल जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व रखने वाली घटना है। ऋग्वेद, महाभारत, पुराणों और आयुर्वेद – सभी में इसके बारे में विस्तृत चर्चा मिलती है।
मासिक धर्म को लेकर समाज में कई तरह की भ्रांतियाँ हैं। कई लोग इसे अशुद्धि मानते हैं, तो कई इसे स्त्री-शक्ति का पवित्र चिह्न मानते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर मासिक धर्म के पीछे कौन-सी देवकथा जुड़ी है, इसके धार्मिक और वैदिक महत्व क्या हैं, और आयुर्वेद इसे किस दृष्टि से देखता है।
देवताओं और असुरों के बीच युद्ध में एक समय ऐसा आया जब असुरों के महान वीर और ब्रह्मज्ञानी वृत्रासुर ने देवताओं को पराजित कर दिया। इन्द्रदेव ने अपने अस्त्र – वज्र से वृत्रासुर का वध किया।
लेकिन चूंकि वृत्रासुर ब्राह्मणत्व संपन्न और महान तपस्वी थे, उनका वध ब्रह्म-हत्या के समान माना गया। इससे इन्द्र को भयानक पाप लग गया और वे चिंतित हो गए।
इन्द्रदेव पाप के बोझ से व्याकुल होकर देवगुरु बृहस्पति और अन्य ऋषियों के पास गए। उन्होंने उपाय पूछा कि इस पाप से कैसे मुक्त हो सकते हैं।
इंद्रदेव को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषियों ने सलाह दी कि इस पाप को चार भागों में विभाजित कर इसे धरती, वृक्ष, जल और स्त्रियों में बाँट दिया जाए।
इस प्रकार मासिक धर्म को पवित्रिकरण की प्रक्रिया माना गया।
कई शास्त्रों में इसे अशुद्धि नहीं, बल्कि शुद्धि का साधन कहा गया है,
स्त्रियों को इस समय विश्राम और ध्यान करने की सलाह दी जाती है, ताकि शरीर और मन दोनों पुनः ऊर्जावान हो सकें।5. वेद और आयुर्वेद में वर्णन:
ऋग्वेद (10/85/30) में "ऋतु" शब्द का प्रयोग मासिक धर्म के लिए हुआ है। यहाँ इसे स्त्रियों की स्वाभाविक प्रक्रिया कहा गया है, जो उन्हें अगली सृष्टि के लिए तैयार करती है।
आयुर्वेद मासिक धर्म को शरीर की मासिक शोधन प्रक्रिया मानता है।
यह दोषों (वात, पित्त, कफ) के संतुलन में मदद करता है, गर्भाशय की शुद्धि करता है, शरीर में जमा हुए अपद्रव्य (toxins) को बाहर निकालता है।
आयुर्वेद कहता है कि मासिक धर्म के दौरान स्त्री को अधिक विश्राम करना चाहिए, तैलीय, मसालेदार और बहुत ठंडा भोजन नहीं करना चाहिए। हल्का सुपाच्य भोजन जैसे मूंग की दाल, सूप, फल लेना चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए अपनाये आयुर्वेद अनुसार दिनचर्या
कई जगह इस समय स्त्री को पूजा-पाठ से दूर रखा जाता है, जो मुख्यतः स्वास्थ्य और विश्राम देने की परंपरा थी, न कि अशुद्धि का प्रतीक।
समय के साथ इसका गलत अर्थ लगाया गया और इसे स्त्री-विरोधी नियम समझा जाने लगा।
आज जागरूकता बढ़ रही है और लोग इसे नारी-शक्ति का प्रतीक मानने लगे हैं।
आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि मासिक धर्म प्रजनन तंत्र की तैयारी और सफाई की प्रक्रिया है।
इससे गर्भाशय की परत नवीनीकृत होती है और अगली गर्भावस्था के लिए शरीर स्वस्थ रहता है।
मासिक धर्म केवल जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक गहरा पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व रखने वाली घटना है, इन्द्रहत्या दोष की कथा हमें यह सिखाती है कि यह प्रकृति द्वारा दिया गया शुद्धिकरण का वरदान है, समाज को चाहिए कि वह इस समय स्त्री को विश्राम दे, सम्मान दे और इसे शर्म या अशुद्धि का विषय न बनाए।