आयुर्वेदिक दिनचर्या भारतीय जीवनशैली का आधार है। यदि हम प्रकृति के अनुसार अपनी दिनचर्या व्यवस्थित करें तो रोग पास नहीं आते और मन-शरीर संतुलित रहता है। आइए जानते हैं सुबह से रात तक आयुर्वेद दिनचर्या का सही क्रम।
सूर्योदय से 1.5–2 घंटे पहले उठना श्रेष्ठ है।
प्राणवायु शुद्ध रहती है और मन शांत होता है।
ध्यान और जप का यह उत्तम समय है।
नींद से उठते ही शौच जाना चाहिए।
वेग को रोकना रोगों का कारण है।
3. दंतधावन (दांत साफ करना):
नीम, बबूल जैसी दातून उत्तम मानी जाती है।
दांत मजबूत और श्वास ताज़ा रहते हैं।
जीभ पर जमे विषाक्त पदार्थ हटते हैं।
पाचन और स्वाद शक्ति बढ़ती है।
त्रिफला जल से आंखें धोना लाभकारी।
आंखों की रोशनी बनी रहती है।
तिल या नारियल तेल से कुल्ला करने से दांत-मसूड़े मजबूत होते हैं।
प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, हल्का व्यायाम शरीर को सक्रिय करता है।
सप्ताह में 2-3 बार तेल मालिश से त्वचा और हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
गुनगुने जल से स्नान शरीर को शुद्ध करता है।
सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शांति के लिए ध्यान आवश्यक है।
1. नाश्ता:
हल्का और सुपाच्य नाश्ता करना चाहिए।
मौसमी फल, अंकुरित अनाज उत्तम हैं।
नियमित काम में लगना चाहिए।
आलस्य तमोगुण को बढ़ाता है।
दोपहर का भोजन सबसे प्रमुख है।
दाल, चावल, सब्ज़ी और घी का सेवन करें।
दोपहर में 20–30 मिनट का विश्राम ताजगी देता है।
शाम की आयुर्वेदिक दिनचर्या (Evening Ayurveda Dincharya)
हल्का व्यायाम, टहलना और संध्योपासना करें।
सूर्यास्त के बाद भारी काम न करें।
हल्का और सुपाच्य भोजन लें।
खिचड़ी, दलिया, हल्की सब्जियां उत्तम हैं।
दही और भारी भोजन रात में न खाएं।
100 कदम टहलना पाचन के लिए लाभकारी है।
परिवार संग समय बिताना मानसिक संतुलन देता है।
निद्र(नींद):
रात 10 बजे तक सो जाना उत्तम है।
गहरी नींद शरीर की मरम्मत करती है और तनाव मिटाती है।
क्योंकि यह शरीर और मन को संतुलित रखकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
इस समय वायु शुद्ध होती है और ध्यान-योग के लिए मन स्थिर रहता है।
क्योंकि रात में पाचन अग्नि कमजोर रहती है, भारी भोजन से अपच और रोग बढ़ते हैं।
आयुर्वेदिक दिनचर्या केवल नियम नहीं बल्कि जीवन जीने की कला है। यदि हम सुबह से रात तक इन आदतों को अपनाएँ, तो दीर्घायु, रोगमुक्त और प्रसन्न जीवन प्राप्त कर सकते हैं।