हनुमानजी और संजीवनी बूटी का रहस्य, इतिहास एवं आयुर्वेदिक सत्य

देव कथाएँ
Dec 21, 2025
loding

प्रस्तावना:

भारतीय सभ्यता के विशाल ज्ञानकोश में रामायण की कथा केवल एक धार्मिक आख्यान नहीं, अपितु एक जीवंत प्रतीक है - सत्य, साहस, भक्ति और विज्ञान का। हनुमानजी की संजीवनी बूटी लाने की कथा इस ग्रंथ का वह अद्भुत अंश है जिसमें आस्था, विज्ञान और प्रकृति का संगम एक रूप में दिखता है।
संजीवनी नामक यह औषधि अमृत तुल्याकही गई है - जो मृतप्राय शरीर में भी प्राण प्रवाहित करने में समर्थ मानी जाती है।


1. रामायण में संजीवनी प्रसंग - एक दिव्य लीला:

1.1 युद्धकाण्ड का वर्णन:

लंका के युद्ध में जब रावण का पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मणजी पर शक्तिबाण प्रहार किया, तब लक्ष्मणजी मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। सम्पूर्ण वानरसेना व्याकुल हो उठी। श्रीराम शोकाकुल होकर बोले -यदि लक्ष्मणजी न बचें तो यह जीवन निरर्थक है। तब विभीषण ने सुषेण वैद्य का स्मरण कराया, जो लंका में वैद्यराज माने जाते थे।

सुषेण ने लक्ष्मणजी की नाड़ी देखी और कहा - “हे प्रभो! यदि रात्रि समाप्त होने से पूर्व संजीवनी नामक दिव्य औषधि हिमालय के द्रोणगिरि शिखर से प्राप्त हो जाए, तो लक्ष्मण के प्राण पुनः लौट सकते हैं।

तत्क्षण श्रीराम ने हनुमानजी को आज्ञा दी
हे कपीश्रेष्ठ! शीघ्र जाओ, द्रोणगिरि से वह अमृत समान औषधि ले आओ।


1.2 हनुमानजी की उड़ान और पर्वत का अधिग्रहण:

हनुमानजी ने प्रणाम कर संकल्प लिया और एक ही झपट में आकाशमार्ग से हिमालय की ओर उड़ चले।
उन्होंने अनेक पर्वत, नदियाँ और आकाशगामी प्रदेश पार किए। परंतु जब वे उस पर्वत पर पहुँचे जहाँ संजीवनी के समान अनेक दिव्य औषधियाँ एक साथ प्रफुल्लित थीं, तब वे पहचान न सके कि कौन-सी संजीवनी है।

किंवदंती है कि वहाँ हजारों औषधियाँ रात्रि में प्रकाश देती थीं और दिव्य सुगंध से चारों ओर पवन भर जाता था।
हनुमानजी ने सोच लियायदि एक बूटी पहचान में न आए, तो मैं समस्त पर्वत ही ले चलूँ।

उन्होंने अपने दिव्य आकार को पर्वत समान बढ़ाया, पर्वत की शिखा को पकड़ा और संपूर्ण द्रोणगिरि पर्वत को जड़ से उखाड़ कर आकाश में ले उड़े।
उनके पगों से पृथ्वी कांप उठी, और देवगण पुष्पवर्षा करने लगे।


1.3 सुषेण द्वारा औषधि प्रयोग:

जब हनुमानजी पर्वत लेकर लौटे, तब सुषेण वैद्य ने दिव्य औषधि का चयन कर लक्ष्मणजी की नासिका में रखा।
क्षणभर में लक्ष्मणजी के शरीर में प्राणसंचार पुनः आरंभ हुआ।
सेना में हर्ष छा गया, और रामकथा के इतिहास में यह प्रसंग संजीवनी प्रसंगकहलाया।


2. संजीवनीशब्द का अर्थ और उसका प्रतीकात्मक महत्व:

2.1 शब्दार्थ:

संजीवनीशब्द दो खंडों से निर्मित है - “सं” (सम्यक्, पूर्ण) और जीवनी” (जीवन देने वाली)।
अर्थात् वह शक्ति जो मृतप्राय या निष्प्राण वस्तु में भी पुनः जीवन भर दे - वही संजीवनी कहलाती है।

2.2 आयुर्वेदिक दृष्टिकोण:

आयुर्वेद में जीवनीय गणनाम से औषधियों की एक श्रेणी वर्णित है, जो जीवनबल, ओज, और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं।
संजीवनी को इसी श्रेणी की सर्वोत्तम औषधि माना गया है। यह शरीर में जठराग्नि प्रज्वलित करती है, धातु को पुष्ट करती है तथा प्राणशक्ति को पुनः सक्रिय करती है।

2.3 प्रतीकात्मक रहस्य:

संजीवनी केवल औषधि नहीं, बल्कि प्रेरणा का प्रतीक है
जो मनुष्य के भीतर सुप्त शक्ति को जाग्रत कर देती है।
हनुमानजी का पूरा पर्वत उठा लेना इस बात का संकेत है कि जब ज्ञान की पहचान कठिन हो, तब संपूर्ण स्रोत को साथ ले आना ही विवेक है।


3. संजीवनी बूटी का स्थान - द्रोणगिरि का रहस्य:

3.1 द्रोणगिरि पर्वत का वर्णन:

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित द्रोणगिरि” (जिसे कुछ स्थलों पर गंधमादनभी कहा गया) उत्तराखंड के उच्च हिमालय क्षेत्र में स्थित माना गया है।
यह पर्वत औषधियों का भंडार है। इसकी शिलाएँ दिव्य जड़ी-बूटियों से आच्छादित कही गई हैं, जो रात्रि में मंद आलोक छोड़ती हैं।

3.2 लोकश्रुति और जनमान्यता:

आज भी कई ग्रामवासी यह मानते हैं कि हनुमानजी ने इसी पर्वत का एक भाग ले जाकर श्रीलंका में रखा था।
कहा जाता है कि द्रोणगिरि का शिखर अब भी अधूरा है - जहाँ से पर्वतखंड उखड़ा था, वहाँ भूमि समतल दिखाई देती है।
यह लोकश्रुति इस बात का द्योतक है कि यह कथा जनमानस में कितनी गहराई से जीवित है।

3.3 रहस्यमय वनस्पतियाँ:

द्रोणगिरि पर्वत पर अब भी अनेक दुर्लभ औषधियाँ पाई जाती हैं। कुछ वनस्पतियाँ ऐसी हैं जो सूखकर भी पुनः हरी हो जाती हैं।
यह गुण ही संजीवनीकी परिभाषा से मेल खाता है।
आधुनिक वनस्पति विज्ञान इस विशेषता को पुनर्जीवन क्षमता” (Resurrection Ability) कहता है।


4. आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक दृष्टि से संजीवनी का स्वरूप:

4.1 जीवनदायिनी गुण:

आयुर्वेद में यह कहा गया है कि ऐसी औषधियाँ जिनमें प्राणवायु को पुनः प्रज्वलित करने की क्षमता हो, वे संजीवनी वर्गमें आती हैं।
इनका प्रभाव हृदय, मस्तिष्क और नाड़ी संस्थान पर अत्यंत तीव्र होता है।

4.2 सूक्ष्म शक्ति का सिद्धांत:

संजीवनी केवल रासायनिक तत्वों से नहीं, बल्कि सूक्ष्म प्राणशक्तिसे संपन्न मानी जाती है।
भारतीय तत्वज्ञान के अनुसार प्रत्येक औषधि में केवल भौतिक नहीं, बल्कि सूक्ष्म चेतन शक्ति भी होती है।
संजीवनी वह औषधि है जिसमें यह सूक्ष्म प्राणतत्त्व अत्यधिक सशक्त रूप में विद्यमान रहता है।

4.3 पुनर्जीवन का रहस्य:

कुछ पर्वतीय वनस्पतियाँ जैसे जीवाकऔर रसनाप्राचीन ग्रंथों में जीवनपुनःस्थापक मानी गई हैं।
संजीवनी इन्हीं में सर्वोच्च है -
जो न केवल शरीर को, बल्कि मन और प्राण को भी जाग्रत कर देती है।


5. हनुमानजी का पराक्रम और आध्यात्मिक संदेश:

5.1 भक्ति से परे विज्ञान:

हनुमानजी का संजीवनी पर्वत लाना केवल चमत्कार नहीं, बल्कि ज्ञान का रूपक है -
जब साधक अपनी सीमाओं से ऊपर उठता है, तब वह प्रकृति की समस्त शक्तियों को अपने अधीन कर लेता है।

5.2 पर्वत उठाने का रहस्य:

पर्वत का उठाना प्रतीक है संपूर्ण ज्ञान को आत्मसात करने का।
हनुमान जी ने कहा - “सत्य न मिलने पर  सभी स्रोत को  उठा कर ले जाना उचित है।”
यह गूढ़ शिक्षा हमें बताती है कि जब जीवन में समाधान न दिखे, तो सम्पूर्ण ज्ञान और श्रम से खोज करो।

5.3 संजीवनी का आध्यात्मिक अर्थ:

संजीवनी केवल शरीर को नहीं, आत्मा को भी पुनर्जीवित करती है।
यह औषधि नहीं, बल्कि वह चेतना है जो मनुष्य के भीतर निहित दिव्यता को पुनः जाग्रत करती है।
हनुमानजी स्वयं उस संजीवनी शक्ति के प्रतीक हैं जो मृत विवेक को पुनः जीवंत करती है।


6. आधुनिक युग में संजीवनी की प्रेरणा:

6.1 औषधीय अनुसंधान की दिशा:

वर्तमान काल में अनेक आयुर्वेदिक संस्थाएँ हिमालय क्षेत्र में दुर्लभ जड़ी-बूटियों की खोज कर रही हैं।
संजीवनी बूटी चाहे भौतिक रूप में मिले या न मिले, उसका विज्ञान आज भी अनुसंधान का विषय है -
क्या प्रकृति में ऐसी वनस्पति संभव है जो जीवनशक्ति पुनः प्रदान करे?”

6.2 पर्यावरणीय सन्देश:

हनुमानजी की कथा यह भी सिखाती है कि वनस्पतियाँ केवल पेड़ नहीं, बल्कि जीवन का आधार हैं।
यदि हम प्रकृति की रक्षा करें, तो वही शक्ति हमें पुनर्जीवित कर सकती है।
संजीवनी आज पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बन गई है।

6.3 मानवता के लिए संदेश:

हनुमानजी की उड़ान केवल औषधि के लिए नहीं थी,
वह मानवता के लिए जीवनकी खोज थी।
संजीवनी का रहस्य यही है - जीवन को बचाना, आत्मबल को पुनः जाग्रत करना, और आस्था को विज्ञान में रूपांतरित करना।


 

निष्कर्ष:

संजीवनी बूटी का वास्तविक स्वरूप भले ही रहस्यमय रहे, किंतु उसका संदेश अमरता है।

वह यह सिखाती है कि जीवन में जब सब कुछ समाप्त-सा प्रतीत हो, तब भी भीतर की कोई शक्ति हमें पुनः उठने को प्रेरित करती है।
हनुमानजी की भक्ति, साहस और विवेक - यही सच्ची संजीवनी हैं।

संजीवनी केवल एक पौधा नहीं, बल्कि वह चेतना है जो मनुष्य के भीतर छिपे दिव्य तत्व को जाग्रत करती है।
जब तक यह विश्वास जीवित है, तब तक हनुमानजी और संजीवनी बूटी का रहस्य भी सजीव रहेगा।