सूर्य देव और अष्टांग हृदयम्: प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान का दिव्य रहस्य

जनरल बातें
Dec 21, 2025
loding

प्रस्तावना:

भारत की प्राचीन सभ्यता ने सूर्य को केवल एक ग्रह नहीं, बल्कि जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य का स्रोत माना। वेदों से लेकर आयुर्वेद तक, सूर्य देव की उपासना का गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व रहा है।
इसी कड़ी में, महर्षि वाग्भट द्वारा रचित अष्टांग हृदयम् ग्रंथ ने मानव शरीर, मन और पर्यावरण के बीच अद्भुत सामंजस्य को समझाने का कार्य किया।

इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे सूर्य देव की आराधना और अष्टांग हृदयम् के सिद्धांत मिलकर प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान का दिव्य रहस्य उजागर करते हैं।


वेदों में सूर्य देव का स्थान - जीवन के प्राणदाता:

सूर्य - सर्वभूतानां चक्षुः’ (समस्त प्राणियों की दृष्टि):

ऋग्वेद में कहा गया है -

"सूर्यो विश्वस्य चक्षुः" अर्थात सूर्य समस्त सृष्टि की आँखें हैं।

सूर्य केवल प्रकाश का नहीं, बल्कि जीवन-संचार का प्रतीक है। उनके बिना पृथ्वी पर न ताप, न ऊर्जा, न जीवन संभव है।

सूर्य की किरणों का आयुर्वेदिक प्रभाव:

आयुर्वेद के अनुसार सूर्य की किरणें पाँच महाभूतों - पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश - को संतुलित करती हैं।
सुबह का सूर्य वात और कफ को शांत करता है, जबकि दोपहर का सूर्य पित्त को उत्तेजित करता है। इसीलिए सुबह की धूप में बैठना सबसे स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।


अष्टांग हृदयम् - आयुर्वेद का सार:

ग्रंथ का इतिहास:

अष्टांग हृदयम् महर्षि वाग्भट द्वारा रचित है, जिसमें आयुर्वेद के आठ अंगों (अष्टांग) का वर्णन मिलता है:

  1. काय चिकित्सा (शरीर चिकित्सा)
  2. शल्य चिकित्सा (शल्य चिकित्सा)
  3. शालाक्य तंत्र (नेत्र-कर्ण-नासिका रोग)
  4. कौमारभृत्य (बाल चिकित्सा)
  5. अगद तंत्र (विष चिकित्सा)
  6. भूत विद्या (मानसिक रोग)
  7. रसायन (दीर्घायु विज्ञान)
  8. वाजीकरण (प्रजनन शक्ति)

यह ग्रंथ केवल औषधियों का विवरण नहीं देता, बल्कि जीवन जीने की कला बताता है


सूर्य चिकित्सा (Heliotherapy)प्राचीन भारत से आधुनिक विज्ञान तक:

सूर्य किरणों का चिकित्सीय उपयोग:

आयुर्वेद में सूर्य को औषधिनाम् अधिपःकहा गया है - अर्थात् औषधियों का अधिपति।
सूर्य की किरणों में विटामिन D, फोटोनिक ऊर्जा और बायो-इलेक्ट्रॉनिक शक्ति होती है जो शरीर में प्राणशक्ति (Vital Force) बढ़ाती है।

सूर्य चिकित्सा के प्रमुख लाभ:

  • त्वचा रोगों में लाभ (कुष्ठ, सोरायसिस, विटिलिगो)
  • हड्डियों की मजबूती (विटामिन D संश्लेषण)
  • मन की शांति (सेरोटोनिन उत्पादन में वृद्धि)
  • रक्त शुद्धि और पाचन में सुधार

अष्टांग हृदयम् में दिनचर्या और सूर्य की भूमिका:

ब्रह्ममुहूर्त और सूर्य उदय का महत्व:

वाग्भट कहते हैं -

ब्रह्ममुहूर्त उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुशः।अर्थात् जो व्यक्ति ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से पहले) उठता है, वह दीर्घायु और स्वस्थ रहता है।

सूर्य नमस्कार - शारीरिक और आध्यात्मिक चिकित्सा:

सूर्य नमस्कार के 12 मंत्र, सूर्य देव के 12 रूपों की स्मृति कराते हैं -
(मित्राय, रवये, सूर्याय, भानवे, खगाय, पूष्णे, हिरण्यगर्भाय, मरीचये, आदित्याय, सवित्रे, अर्काय, भास्कराय नमः)
इनका अभ्यास शरीर के सभी सप्तधातुओं - रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र - को संतुलित करता है।


प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान में सूर्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

सूर्य और जैव-लय (Biological Rhythm):

आयुर्वेद बताता है कि शरीर का हर अंग सूर्य की गति से जुड़ा है।

  • सुबह - वात प्रमुख (ऊर्जा संचरण)
  • दोपहर - पित्त प्रमुख (पाचन और अग्नि)
  • संध्या - कफ प्रमुख (शांत अवस्था)

सूर्य और पंचमहाभूत संतुलन:

सूर्य की गर्मी तेज तत्व को जागृत करती है जो पाचन अग्नि का मूल है। इसीलिए अष्टांग हृदयम् में कहा गया है -

अग्निः सर्वेभ्यः श्रेष्ठःअर्थात् अग्नि ही स्वास्थ्य का मूल है।


अष्टांग हृदयम् और सूर्य से जुड़ी उपचार पद्धतियाँ:

  1. सूर्य अर्क चिकित्सासूर्य की किरणों में औषधियों को रखकर अर्क बनाना।
  2. सूर्य जल चिकित्सानीले, हरे या लाल रंग की काँच की बोतल में सूर्यप्रकाशित जल पीना।
  3. सूर्य स्नानसूर्योदय के समय शरीर को धूप में रखना।
  4. सूर्य दृष्टि ध्यान (Sun Gazing) – सूर्योदय या सूर्यास्त के प्रथम 10 मिनट में ध्यान।

आधुनिक विज्ञान में सूर्य ऊर्जा की पुष्टि:

आधुनिक चिकित्सा ने अब यह स्वीकार किया है कि सूर्य प्रकाश में मौजूद अल्ट्रावायलेट किरणें, फोटॉन ऊर्जा और इंफ्रारेड गर्मी शरीर के अनेक रोगों को ठीक करने में सहायक होती हैं।
सूर्य की किरणें मेलनिन, सेरोटोनिन, और विटामिन D का संतुलन बनाती हैं - जो मनोबल, प्रतिरक्षा और स्वास्थ्य के तीन स्तंभ हैं।


निष्कर्ष - सूर्य ही स्वास्थ्य का स्रोत:

अष्टांग हृदयम् का यह सिद्धांत आज भी उतना ही सत्य है। रोगा सर्वे अपि मन्दाग्नौअर्थात् जब अग्नि मंद होती है, तब ही रोग उत्पन्न होते हैं। और अग्नि का मूल स्रोत सूर्य ही है।इसलिए सूर्योपासना और आयुर्वेदिक दिनचर्या का पालन कर व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता है।

सूर्य देव केवल आकाश में चमकने वाला तारा नहीं, बल्कि जीवन का प्रथम चिकित्सक हैं। अष्टांग हृदयम् का ज्ञान हमें यह सिखाता है कि यदि हम सूर्य, प्रकृति और शरीर की लय के साथ चलें, तो स्वास्थ्य, संतुलन और शांति स्वयं हमारे जीवन में प्रकट होती है।