महादेव, अर्थात् भगवान
शिव, सृष्टि के तीन प्रमुख देवों में से एक हैं। शिवपूजा में बिल्ल्व
पत्र (जिसे “बेळ पत्र”, “बेल पत्र”, “बिल्वा पत्र” आदि नामों से
जाना जाता है) को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह सिर्फ एक पूजा सामग्री
ही नहीं, अपितु एक जीवंत प्रतीक और आयुर्वेदिक चिकित्सा का अमूल्य
भंडार भी है। इस लेख में हम निम्न बिंदुओं पर विस्तार करेंगे:
पौराणिक ग्रंथों
के अनुसार, बिल्ल्व (Bel / Bilva) वृक्ष की उत्पत्ति देवी पार्वती से जुड़ी
हुई मानी गई है। कहा जाता है कि पार्वती जी ने कड़ी तपस्या की थी और उनकी झड़ी हुई
पसीने की बूँदें मंद्राचल पर्वत पर गिरकर बिल्ल्व वृक्ष बन गईं। इसीलिए वह वृक्ष “बिल्व” नाम से प्रसिद्ध
हुआ और यह वृक्ष देवी-शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है।
एक अन्य कथा में
कहा गया है कि जो व्यक्ति इस वृक्ष को देखता है या स्पर्श करता है, वह पापों से
मुक्त हो जाता है। श्री बिल्वाष्टकम् में यह विवरण
मिलता है:
“दर्शनं बिल्ल्व वृक्षस्य, स्पर्शनं
पापनाशनम्,
अघोरपापसंहाम्, एकं बिल्ल्वं
शिवार्पणम्।”
यह श्लोक यह
बताता है कि विल्व वृक्ष का दर्शन और स्पर्श पाप नाशक है, तथा एक बिल्ल्व
पत्ता शिव को अर्पित करने से सबसे बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
शिव पुराण और
अन्य पुराणों में बिल्ल्व पत्र से जुड़ी कई रोचक कथाएँ विद्यमान हैं। कुछ प्रमुख
कथाएँ निम्न हैं:
1. शिकारी और बिल्ल्व वृक्ष की कथा
एक कथा कहती है
कि एक शिकारी गलती से एक बिल्ल्व वृक्ष पर चढ़ गया और रातभर वहीं रुक गया। वह
भयभीत था, न कोई भोजन था और न कोई प्रकाश। निरंतर भय और अनिश्चय के
कारण वह बिल्ल्व पत्र तोड़कर धीरे-धीरे लिंग पर गिराता रहा और नाम “शिव…” उच्चरित करता
रहा। जैसे-जैसे वह नाम छेड़ता गया, निस्पृहता बढ़ती गई। अंततः भोर होते ही
महादेव प्रकट हुए और उससे बोले, “ओ भक्त! तूने अनजाने ही मुझसे भक्ति की, इसलिए मैं
प्रसन्न हूँ।” कहानी यह संदेश देती है कि शिव भक्त की
नीयत (भक्ति) को देखता है, न कि विधि-शुद्धता को।
2. श्री बिल्ल्वाष्टकम् और उसके महिमा
बिल्ल्वाष्टकम् नामक स्तोत्र में आठ श्लोकों में बिल्ल्व पत्र की महिमा विस्तृत की गई है। कहा
गया है कि एक बिल्ल्व पत्र की पूजा करने से हजारों हाथी, घोड़े, कोटी कन्याएँ
आदि दान करने के बराबर पुण्य मिलता है।
“दंति कोटि सहस्राणि अश्वमेधष्टानि च। (इस श्लोक का अर्थ यह है कि हजारों हाथियों का दान, अनेक अश्वमेध यज्ञों का आयोजन)
कोटि कन्याः महादानम्, एकं बिल्ल्वं शिवार्पणम्॥” (असंख्य कन्याओं का महादान भी उस पुण्य के बराबर नहीं होता, जो सच्चे मन से भगवान शिव को एक बिल्व पत्र अर्पित करने से प्राप्त होता है।)
इस श्लोक से यह
स्पष्ट है कि बिल्ल्व पत्र का पूजा में महत्व कितना व्यापक माना गया है।
3. शिवलोक और बिल्ल्व वृक्ष
कई पुराणों में
यह वर्णन मिलता है कि शिवलोक (शिव का लोक) इस वृक्ष के वृक्ष-आधार पर स्थित है। जो
एकांत में बिल्ल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग की पूजा करता है, वह मोक्ष की
दृष्टि से विशेष फल प्राप्त करता है। यह दर्शाता है कि बिल्ल्व वृक्ष स्वयम् एक
पवित्र तटस्थ स्थान है।
पूजा में उपयोग
होने वाला बिल्ल्व पत्र निम्न शर्तों पर होना चाहिए:
कुछ स्तोत्रों
में निम्न प्रकार के मंत्रों का उच्चारण करने की सलाह दी जाती है:
मंत्र उच्चारण
के साथ-साथ मन की शुद्धता, निश्चय और श्रद्धा महत्वपूर्ण है।
आधुनिक
वैज्ञानिक अध्ययनों और आयुर्वेदिक ग्रंथों से यह ज्ञात है कि बिल्ल्व पत्र (और
वृक्ष के अन्य भाग) में कई जैव सक्रिय यौगिक पाए जाते हैं, जो उसे औषधीय
दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं।
बिल्ल्व वृक्ष (Aegle marmelos) के विभिन्न हिस्सों (पत्र, फल, जड़, छाल) में निम्न प्रमुख यौगिक पाए गए हैं:
इन यौगिकों के
आधार पर बिल्ल्व पत्र और फल में निम्न प्रभावशाली गुण पाए गए हैं।
नीचे विभिन्न रोगों और उपयोगों के अनुसार बिल्ल्व पत्र और वृक्ष के अन्य भागों का विवरण प्रस्तुत है:
रोग / समस्या | उपयोग युक्ति / पत्ते का उपयोग | कार्यक्षमता / लाभ |
पाचन संबंधी विकार | पत्ते की ताजा रस (पानी या हलका मीठा) | ब़ेहड़ी, अपच, उल्टी, गैस, पेट दर्द आदि में उपयोगी |
दस्त / अतिसार (Diarrhea / Dysentery) | अधपकी फल, पत्ते का अर्क | दस्त को रोकना और पाचन शोधन करना |
जाड़ा / ज्वर / सर्दी | पत्ते की decoction या काढ़ा | ज्वर नियंत्रित करता है, बुखार घटाता है |
मधुमेह (Diabetes) | पत्ते चबाना या रस लेना | रक्त शर्करा नियंत्रित करना |
श्लेष्म (Kapha) विकार | पत्ते का अर्क | श्लेष्म कम करना और बलगम नियंत्रित करना |
त्वचा रोग | पत्ते का लेप / पेस्ट | जलने, एक्सिमा, दाद, खुजली में सुधार करना |
पीलिया (Jaundice) | पत्ते का रस (काली मिर्च के साथ) | यकृत को सहारा देना और पित्तशोधित करना |
रक्त शुद्धि | पत्ते का अर्क | रक्त को शुद्ध बनाना |
शक्ति व जीवन शक्ति (Rejuvenation) | पत्ते व अन्य भागों का मिश्रण | रक्त को शुद्ध बनाना |
उदाहरण स्वरूप, स्वामी सिवानंद
का कथन है कि चयापचय प्रणाली, उदरशक्ति और विकार नियंत्रण के लिए बिल्ल्व
वृक्ष अति उपयोगी है।
विज्ञान-आधारित
शोधों में भी बिल्ल्व वृक्ष के विभिन्न हिस्सों की औषधीय प्रभावशीलता पाई गई है।
उदाहरण स्वरूप:
इन शोधों की
पुष्टि से यह स्पष्ट है कि बिल्ल्व पत्र केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण
नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी प्रभावशाली है।
महादेव और बिल्ल्व पत्र की यह कथा न केवल धार्मिक और प्रतीकात्मक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि बिल्ल्व पत्र के औषधीय गुणों ने इसे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य दृष्टिकोण से भी अत्यंत मूल्यवान बनाया है। यदि कोई व्यक्ति श्रद्धा, शुद्धता और संयम से बिल्ल्व पत्र अर्पित करता है - वहीं उसे भक्ति की गहरी अनुभूति और स्वास्थ्य लाभ दोनों प्राप्त हो सकते हैं।